20 प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक अर्थ सहित – Sanskrit Shlokas with hindi meaning

संस्कृत भाषा एक विश्व का सबसे प्राचीन भाषा है जिसे ऋषि मुनिओं ने बनाया था | संस्कृत भाषा का भारतीय संस्कृति में अपना एक अलग ही महत्व है | संस्कृत भाषा में ऋषि मुनिओं ने कोई संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlok) लिखे जो ज्ञान और सच्चाई से परिपूर्ण है | जो हमें जीवन के हर पल में सही और गलत का फैसला करने में योगदान देता है | हमने आपके लिए 20 प्रेरणादायक संस्कृत में श्लोक और उसके अर्थ प्रदान किया है ताकि आप भी श्लोक की गहराई में छिपे ज्ञान को उपयोग कर सकें |

प्रस्तुत है 20 प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक और उनके अर्थ

संस्कृत श्लोक 1

1 . सर्वा विद्याः पुरा प्रोक्ताः संस्कृते हि महर्षिभिः । तद्विद्यानिधये सेव्यं संस्कृतं कामधेनुवत् ।।

श्लोक का अर्थ :- महर्षियों ने पूर्वकाल से ही संस्कृत भाषा में समस्त विद्याओं की रचना कर दी है । किन्तु उन विद्यारूपी खजानों को पाने के लिए कामधेनु के समान संस्कृत भाषा की सेवा आवश्यक है । 

संस्कृत श्लोक 2

2. वायूनां शोधकाः वृक्षाः रोगाणामपहारकाः । । तस्माद् रोपणमेतेषां रक्षणं च हितावहम् ।। 

श्लोक का अर्थ : – वृक्ष वायु को शुद्ध करते हैं और रोगों को दूर भगाने में सहयोगी होते हैं । इसलिए वृक्षों का रोपण और रक्षण प्राणीमात्र के लिए हितकारी है ।

संस्कृत श्लोक 3

3. त्वक्शाखापत्रमूलैश्च पुष्पफलरसादिभिः । प्रत्यङ्गरुपकुर्वन्ति वृक्षाः सद्भिः समं सदा ।। 

श्लोक का अर्थः– सन्तों के समान ही वृक्ष अपनी त्वचा शाखा पत्ते मूल , पुष्प फल रस आदि सभी अंगों से प्राणियों का उपकार करते है ।

संस्कृत श्लोक 4

4. केषाञ्चिदपि वस्तूनां गम्यते सङ्गिना गुणः । वैद्यनापितहन्तृणां हस्तेषु क्षुरिका यथा ।। 

श्लोक का अर्थः– किसी भी वस्तु का गुण उसके संगवाले से समझा जाता है अर्थात् वस्तु के धारणकर्ता पर निर्भर करता है । जैसे छुरी का गुण उपयोग वैद्य , नाई और हत्यारे के हाथ में देखकर ही पता चलता है । 

संस्कृत श्लोक 5

5. यच्छक्यं ग्रसितुं शस्तं ग्रस्तं परिणमेच्च यत् । हितं च परिणामे यत्तदाद्यं भूतिमिच्छता ।। 

श्लोक का अर्थ : – जो वस्तु खाई जा सके और खाने पर भली – भाँति पच सके और पच जाने पर हितकारक हो ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले व्यक्ति को वही वस्तु खानी चाहिए ।

संस्कृत श्लोक 6

6. अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रं स्वल्पं तथायुर्बहवश्च विघ्नाः । सारन्ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसैर्यथा क्षीरमिवाऽम्बुमध्यात् ।। 

श्लोक का अर्थः– शास्त्र का पार कहीं निश्चित नहीं है और मनुष्य की आयु कम है इसलिए सार ग्रहण कर सार हीन को उसी प्रकार छोड़ देना चाहिए , जिस प्रकार हंस जल से दूध ग्रहण कर लेते हैं और जल छोड़ देते हैं । 

संस्कृत श्लोक 7

7. शस्त्रहता न हि हता रिपवो भवन्ति , प्रज्ञाहतास्तुरिपवः सुहता भवन्ति । शस्त्रं निहन्ति पुरुषस्य शरीरमेकं प्रज्ञा कुलञ्च विभवाच यशश्च हन्ति ।।

श्लोक का अर्थ : – शस्त्रों से मारे गये शत्रु नहीं मरते परन्तु बुद्धि से मारे गये शस्त्रु वास्तव में मारे जाते हैं । शस्त्र से तो शत्रु का मरकर मात्र शरीर ही नष्ट किया जा सकता है परन्तु बुद्धि से उसका वंश कुल , वैभव और यश आदि सब कुछ नष्ट हो जाता है ।

संस्कृत श्लोक 8

8. दिनान्ते पिबेत् दुग्धम् , निशान्ते च पिबेत् पयः । भोजनान्ते पिबेत् तक्रम् किं वैद्यस्य प्रयोजनम् ।।

श्लोक का अर्थ : – दिवस के अंत ( शाम ) में दूध पीना चाहिए , रात्रि के अंत में ( सुबह ) जल पीना चाहिए , भोजन के अंत में छाछ पीनी चाहिए । ऐसा करने से वैद्य की आवश्यकता नहीं है ।

संस्कृत श्लोक 9

9. आचार्यात्पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया । कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचारिभिः ।। 

श्लोक का अर्थ : – शिष्य अपने जीवन का एक भाग अपने आचार्य से सीखता है , एक भाग अपनी बुद्धि से सीखता है एक भाग समय से सीखता है तथा एक भाग वह अपने सहपाठियों से सीखता है ।

संस्कृत श्लोक 10

10. नास्ति विद्यासमं चक्षुः नास्ति सत्यसमं तपः । नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम् ।। 

श्लोक का अर्थ : – विद्या के समान आँख नहीं है , सत्य के समान तप नहीं है , राग के समान दुःख नहीं है , और त्याग के समान कोई सुख नहीं है ।

संस्कृत श्लोक 11

11 . केनस्विच्छ्रोत्रियो भवति केनस्विद्विन्दते महत् । केनाद्वितीयवान्भवति राजन् केन च बुद्धिमान् ।। 

श्लोक का अनुवादः – हे राजन् ! किससे ( व्यक्ति ) वेदों का ज्ञाता विद्वान होता है ? किसके द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त की जाती है ? किससे ( व्यक्ति ) दूसरा हो जाता है ? और किससे ( व्यक्ति ) बुद्धिमान होता है ? 

संस्कृत श्लोक 12

12 . श्रुतेन श्रोत्रियो भवति तपसा विन्दते महत् । धृत्या द्वितीयवान्भवति राजन् बुद्धिमान्वृद्धसेवया ।।

श्लोक का अनुवादः – वेद से ( व्यक्ति ) वेदों का ज्ञाता / विद्वान होता है । तप से श्रेष्ठता प्राप्त होती है । धैर्य से ( व्यक्ति ) अन्य ( अद्वितीय ) बन जाता है तथा वृद्धों की सेवा से ( व्यक्ति ) बुद्धिमान होता है ।

संस्कृत श्लोक 13

13 . किंस्विद् गुरूतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् । किस्विच्छीघ्रतरं वायोः किंस्विद् बहुतरं तृणात् ।। 

श्लोक का अनुवादः– भूमि से अधिक भारी क्या है ? आसमान से अधिक ऊँचा क्या है ? वायु से अधिक तीव्रगामी क्या है ? तिनके से अधिक व्यापक ( फैलने वाली ) क्या है ?

संस्कृत श्लोक 14

14 . मातागुरूतराभूमेः खादप्युच्चतरः पिता । मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहुतरी तृणात् ।। 

श्लोक का अनुवादः – माता ( जननी ) भूमि से अधिक भारी है । पिता आसमान से भी अधिक ऊँचा है । मन हवा ( वायु ) से भी अधिक तीव्रगामी है तथा चिन्ता तिनके से भी अधिक व्यापक है ।

संस्कृत श्लोक 15

15 . धन्यानामुत्तमं किंस्विद्धनानां स्यात्किमुत्तमम् । लाभानामुत्तमं किं स्यात्सुखानां स्यात्किमुत्तमम् ।। 

श्लोक का अनुवाद : – अनाजों में उत्तम ( श्रेष्ठ ) क्या है ? धनों में उत्तम क्या है ? लाभों में उत्तम क्या है ? तथा सुखों में उत्तम क्या है ? 

संस्कृत श्लोक 16

16 . धन्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम् । लाभानामुत्तमं श्रेयः सुखानां तुष्टिरूत्तमा ।। 

श्लोक का अनुवादः – अनाजों में दक्षता ( चतुराई ) श्रेष्ठ है । धनों में शास्त्रज्ञान उत्तम है । लाभों में उत्तम श्रेय है तथा सुखों में उत्तम संतुष्टि है ।

संस्कृत श्लोक 17

17 . केनस्विदावृत्तो लोकः केनस्विन्न प्रकाशते । केन त्यजति मित्राणि केन स्वर्ग न गच्छति ।। 

श्लोक का अनुवादः – किससे संसार आवृत्त ( ढका ) है ? किससे संसार प्रकाशित नहीं होता है ? किससे मित्र को त्याग देता है ? किससे स्वर्ग नहीं जाता है ?

संस्कृत श्लोक 18

18 . अज्ञानेनावृत्तो लोकस्तमसा न प्रकाशते । लोभात् त्यजति मित्राणि सङ्गात्स्वर्ग न गच्छति ।। 

श्लोक का अनुवादः – अज्ञान से संसार आवृत्त ( ढका ) है । अंधकार से संसार प्रकाशित नहीं होता है । लालच से मित्र को त्याग देता है । आशक्ति ( लगाव ) से ( जीव ) स्वर्ग नहीं जाता है ।

संस्कृत श्लोक 19

19 . तपः किं लक्षणं प्रोक्तं को दमश्च प्रकीर्तितः । क्षमा च का परा प्रोक्ता का च ही परिकीर्तिता ।। 

श्लोक का अनुवादः – तपस्या का क्या लक्षण कहा गया है ? और दमन किसे कहा गया है ? क्षमा किसे कहा गया है ? तथा लज्जा किसे कहा गया है ?

संस्कृत श्लोक 20

20 . तपः स्वधर्मवर्तित्वं मनसो दमनं दमः । क्षमा द्वन्द्वसहिष्णुत्वं हीरकार्यनिवर्तनम् ।।

श्लोक का अनुवादः – अपने धर्म ( कर्त्तव्य ) में लगे रहना ही तपस्या है । मन को वश में रखना ही दमन है । सुख – दुःख , लाभ – हानि में एकसमान भाव रखना ही क्षमा है । न करने योग्य कार्य को त्याग देना ही लज्जा है ।

मैं आशा करता हूं आपको ये 20 प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक से ज्ञान प्राप्त हुआ | 

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