जिसकी बक्शी गई हो खताएँ
जिसके पापों को ढापा गया हो
वो धन्य क्या ही धन्य
क्या ही धन्य… क्या ही धन्य
जिसके पाप का ना ले प्रभु लेखा
जिसके मन में धोखा नहीं रहता
वो धन्य क्या ही धन्य
क्या ही धन्य… क्या ही धन्य
जब तक मैंने अपना पाप ना स्वीकारा
जब तक जुबां मेरी चुप थी
कराहते कराहते गली मेरी हड्डियाँ
तेरा हाथ था मुझ पर भारी (2)
जब तब तेरे सम्मुख पाप को स्वीकारा
क्षमा किया तूने मुझको
मुझे पापों से बक्शी मुक्ति
जिसकी बक्शी गई हो खताएँ
जिसके पापों को ढापा गया हो
वो धन्य क्या ही धन्य
क्या ही धन्य… क्या ही धन्य
तू मेरा है आश्रा छुपने कि जगह है
संकट में मेरी पनाह है
तू घेरेगा मुझको मुक्ति के नगमों से
प्रभु तू चारों तरफ से (2)
आओ धर्मियों आनन्दित हो
यहोवा में मगन हो
गाओ ऐ सच्चे मन वालों
उसके प्रेम कि जय गाओ
जिसकी बक्शी गई हो खताएँ
जिसके पापों को ढापा गया हो
वो धन्य क्या ही धन्य
क्या ही धन्य… क्या ही धन्य
जिसके पाप का ना ले प्रभु लेखा
जिसके मन में धोखा नहीं रहता
वो धन्य क्या ही धन्य
क्या ही धन्य… क्या ही धन्य